Swarupankha - A Poem
I saw this article a few days ago on Facebook titled "The ‘dirt’ in the Dirty Picture" which inspired me to write a poem about Shoorpankha who had been called 'Swaroop-nakha' in those days. A philosophical poem, it talks about how this famous story could well have had some really different origins and how apt the considerations are in modern world. So here goes the poem, please let me know how you like it...
स्वरुपण्खा
स्वरुपण्खा
दंडक में रहने वाली थी वो उत्तम मंजू सुरूपा थी
वो असुर जाती की ज्योति थी और मीनाक्षी कहलाती थी
यौवन में होकर बेवा उसका दुनिया से परित्याग हुआ
फिर राजपुरुष आया एक दिन जीवन में उसके गाज हुआ
क्यूँ स्वरुपण्खा ही इस जग में हर पल लक्ष्मण से हारी है
क्या नहीं समझ पाई दुनिया सौमित्र ही अत्याचारी है
एक नीची जात की अबला के संग उसने ऐसा काण्ड किया
वन की कन्या का अंग भंग करके उसने प्रस्थान किया
जब जग में फैली बात भाई के सम्मुख वो दौड़ी आई
लक्ष्मण नें कहलाया की वो कामुक थी जिसकी सजा पाई
क्यूँ उच्च समाजी सीता ही भारत में पूजी जाती है
क्यूँ स्वरुपण्खा ही इस जग में हर पल हर क्षण क्षति पाती है